महिला रचनाकारों ने श्रृंगारोत्सव में ने मनाया तीज का त्यौहार
क्यों देखती है मेरी नजर तुम को बार-बार, अपनी नजर के शोख इशारों से पूछ लो : संतोष ओबरॉय
गाजियाबाद। प्रकृति मनुष्य की वृत्तियों को संवारने का एक माध्यम है। सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल एवं अमर भारती साहित्य संस्कृति संरथान के श्रृंगारोत्सव व वृक्षारोपण कार्य क्रम को संबोधित करते हुए डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर श्रीमती दीक्षा भंडारी ने उक्त उद्गार व्यक्त किए। श्रीमती भंडारी ने कहा कि मजन की पाऊत बियां ही करती हैं। उन्होंने कहा कि दस तरह के आयोजन त्रियों की रचनात्मकता को शैकित करते हैं। कार्यक्रम की आयोजक डॉ. माला कपूर ने अपनी पंक्तियों दारिका में ही नहीं, द्वार द्वार हों हरि, हरित द्वार हरिद्वार बसें, हुरित में हरी के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण पर बल दिया। डॉ. रमा सिंह ने कहा अगर देना ही है मुझको मोहब्बत जाफरानी दे, मुझे जीने का मकसद दे, नजर को एक कहानी दे। तरुण मिश्रा कहा कि भरी ने कहा उसका होने के लिए खुद को समझने के लिए, मैंने एक उम्र लगाई है बिगड़ने के लिए तूलिका सेठ ने कहा मस्ती का जाम लाकर तुमने पिला दिया है, दुनिया की हर खुशी को रंगीन बना दिया है। ऋचा सूद ने कहा कि भरी रहती है अंदर से, यह जो कलम है मेरी, बंद रहती है। श्रीमती संतोष ओबरॉय ने पुराने दौर की गजल की पंक्तियों तुम चांद से हसीं हो, तारों से पूछ लो, फूलों के हूँ ब हू हो, बहारों से पूछ लो, क्यों देखती हैं मेरी नजरें तुम को बार-बार, अपनी नजरों के शोख इशारों से पूछ लो पर जम कर वाह वाही बटोरी।इस अवसर पर श्रीमती बबीता जैन, डॉ. मंगला वैद, श्रीमती उषा यात्री, श्रीमती पूजा ओबेरॉय, श्रीमती रेखा सेठ, श्रीमती रागनी, डॉ. परिधि यात्री, डॉ. राकेश बंसल एवं आलोक यात्री सहित बड़ी संख्या में श्रोता एवं अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन कीर्ति रत्न एवं इंदू शर्मा ने किया।